दुबले-पतले लोगों में भी अंदरूनी मोटापा, आ रहे बीमारियों की चपेट में
अध्ययन में खुलासा : दुबले-पतले लोगों में भी अंदरूनी मोटापा, आ रहे बीमारियों की चपेट में
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हिमाचल समेत कई अन्य राज्यों में दुबले-पतले नजर आने वाले लोग भी अंदरूनी मोटापे के शिकार हैं। इससे वे बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। हिमाचल में मोटापा और मधुमेह देश की राष्ट्रीय औसत से 3 फीसदी अधिक है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-भारत मधुमेह (आईसीएमआर-आईएनडीआईएबी) के राष्ट्रीय स्तर के अध्ययन में प्रदेश के आंकड़े चिंताजनक हैं। इस विषय पर शोध अध्ययन करने वाले देशभर के विशेषज्ञों में आईजीएमसी शिमला के मेडिसन विभाग के प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र मोक्टा भी शामिल हुए।
हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में भले ही अधिक शारीरिक गतिविधि के कारण लोग स्वस्थ माने जाते हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि राज्य में 39 फीसदी लोग मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 28.6 फीसदी है। वहीं, मोटे लोगों में भी हिमाचल के 55 फीसदी लोगों में पेट का मोटापा देखा गया है, जो राष्ट्रीय औसत 39.5 फीसदी से अधिक है। हिमाचल पेट के मोटापे के मामले में देश का चौथा सबसे खराब प्रभावित राज्य है। वहीं, हिमाचल में 11.5 फीसदी लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, जबकि 18 फीसदी लोग प्री-डायबिटिक हैं। इसका अर्थ है कि अगले 10 वर्षों में उनमें मधुमेह विकसित होने की 50 फीसदी की संभावना है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि हिमाचल के 61 फीसदी शारीरिक रूप से निष्क्रिय और 5 फीसदी ही अत्यधिक सक्रिय हैं। देश की वयस्क आबादी के 43 फीसदी से अधिक लोग इस श्रेणी में आते हैं। यह स्थिति न केवल टाइप-दो में डायबिटीज और गुर्दे की गंभीर बीमारी जैसे गंभीर रोगों के बढ़े हुए जोखिम से जुड़ी है, बल्कि इसे केवल विशेष स्क्रीनिंग टेस्ट के माध्यम से ही पहचाना जा सकता है। इन व्यक्तियों में मोटापे के आसानी से पहचानने योग्य बाहरी लक्षण नहीं दिखते हैं। यह अध्ययन देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के 1,13,043 लोगों पर सर्वे किया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि खाने की आदतें और तेजी से बढ़ती गतिहीन जीवनशैली इन विकारों के लिए जिम्मेदार हैं। जैसे-जैसे लोग आर्थिक रूप से बेहतर होते हैं, उनकी जीवनशैली बगैर शारीरिक कसरतों वाली होती जाती है। यह सुझाव देता है कि हिमाचल प्रदेश में भी मेटाबॉलिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
अध्ययन में पीजीआई चंडीगढ़ के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग, मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन के मधुमेह विज्ञान विभाग, अपोलो अस्पताल चेन्नई के डायबिटीज स्पेशलिटीज सेंटर, एम्स नागपुर के जनरल मेडिसिन विभाग, पुडुचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के सामुदायिक चिकित्सा विभाग, लीलावती अस्पताल और अनुसंधान केंद्र मुंबई के मधुमेह विज्ञान और एंडोक्रिनोलॉजी विभाग समेत देश के कई बड़े चिकित्सा संस्थानों के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।