श्राद्ध पक्ष में भागवत सुनने से पितृ होते हैं तृप्त: आचार्य
श्राद्ध पक्ष में भागवत सुनने से पितृ होते हैं तृप्त: आचार्य ममगाईं
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मातृ पितरों के उद्देश्य से जो अपने प्रिय भोग्य पदार्थ श्रद्धा में प्रदान किए जाते हैं, उसी अनुष्ठान का नाम श्राद्ध है।लोग कहते हैं कि मनुष्य धर्म और समाज के रूढ़िवाद से ऊपर उठकर आज आगे बढ़ गया है।
मातृ पितरों के उद्देश्य से जो अपने प्रिय भोग्य पदार्थ श्रद्धा में प्रदान किए जाते हैं, उसी अनुष्ठान का नाम श्राद्ध है। वृद्ध माता-पिता आदि वृद्धजनों की आज्ञा का पालन करने से पुत्रता सिद्ध होती है। श्राद्ध पक्ष में भागवत कथा सुनने से पितृ तृप्त हो जाते हैं।
उपरोक्त बातें मोहकमपुर के राजेश्वरीपुरम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं ने कहीं। कहा कि भौतिकवादी युग में दिखावा अधिक हो रहा है, जबकि धर्म का दिखावे से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि दूसरों के लिए बुरा सोचने वाला व्यक्ति स्वयं ही परेशानियों में घिरा रहता है। इसके विपरीत दूसरों को खुशी देने वाला व्यक्ति विशाल हृदय का मालिक होता है। साथ ही उसे सारी खुशियां स्वयं ही प्राप्त हो जाती हैं। उन्होंने मानव जीवन पर संस्कारों की अहम भूमिका बताते हुए कहा कि आज प्रगति का युग है।
लोग कहते हैं कि मनुष्य धर्म और समाज के रूढ़िवाद से ऊपर उठकर आज आगे बढ़ गया है। मानव धर्म ही सर्वोपरि धर्म है और मानव सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य है। मनुष्य आज पहले से अधिक सुखी, स्वतंत्र और ज्ञानवान बन गया है।