हत्या के आरोपी को एक लाख में सशर्त जमानत

हत्या के आरोपी को एक लाख में सशर्त जमानत
शिमला। जिला अदालत ने हत्या के मामले के रवींद्र को सशर्त जमानत दी है। विशेष न्यायाधीश की अदालत में जमानत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने के बाद इसे न्यायालय की संतुष्टि के लिए एक लाख रुपये के निजी मुचलके और दो जमानतदार प्रस्तुत करने की शर्त पर रिहाई का आदेश दिया है।
यह मामला 2022 का है। पुलिस टीम को शिवपुरी में पानी की टंकी के पास कब्रिस्तान में असीम का शव मिला था। इस मामले में अभिषेक आरोपी है।
आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 292, 201, 120 और 34 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके बाद से पुलिस मामले की जांच कर रही है।
बीमा कंपनी को एक लाख मुआवजा ब्याज सहित देने के आदेश
राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति इंदर सिंह मेहता ने मुंबई स्थित रिलायंस निप्पॉन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी (पूर्व में रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस) और रिलायंस कैपिटल कंपनी को उपभोक्ता शिकायत मामले में सख्त आदेश जारी किए हैं। आयोग ने बीमा कंपनियों को मृतका के बेटे नंद किशोर को 13 अप्रैल 2016 से लेकर वसूली तक 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित एक लाख रुपये अदा करने का निर्देश दिया है।
साथ ही 20 हजार रुपये मुआवजा व मुकदमेबाजी खर्च के तौर पर भी चुकाने होंगे। यह आदेश 19 जनवरी 2020 को हमीरपुर जिला आयोग के पारित फैसले को बरकरार रखते हुए दिया गया। आयोग ने यह भी चेतावनी दी है कि 30 दिनों में भुगतान न होने पर प्रतिदिन 100 रुपये का जुर्माना विपक्षी पक्षों को देना होगा।
शिकायतकर्ता नंद किशोर, मूल रूप से बिहार निवासी हमीरपुर में मजदूरी करता है। उसकी मां मनु देवी का बीमा रिलायंस कंपनी में करवाया गया था और बीमा प्रीमियम का विधिवत भुगतान किया गया था। 29 नवंबर 2013 को सीने में दर्द के चलते मनु देवी की मृत्यु हो गई।
इसके बाद नंद किशोर संबंधित दस्तावेजों के साथ बीमा कंपनी से दावा पेश किया। लेकिन, यह कहकर दावा खारिज कर दिया कि मृतका बीमित ने केवल एक प्रीमियम का भुगतान किया था। इससे आहत होकर हमीरपुर आयोग में शिकायत दायर की। आयोग ने नंद किशोर के पक्ष में फैसला दिया था, जिसके विरुद्ध बीमा कंपनियों ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की।
लेकिन राज्य आयोग ने अपील खारिज करते हुए कहा कि जिला आयोग के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है और हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। आयोग का यह फैसला उन उपभोक्ताओं के लिए बड़ी राहत है, जिनके दावे बीमा कंपनियां तकनीकी आधारों पर खारिज कर देती हैं।