हिमाचल के स्वास्थ्य संस्थानों में 5 साल तक सेवाएं देना अनिवार्य
अनुबंध शिक्षकों को स्थायी अध्यापकों की तरह दें वित्तीय लाभ
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत डॉक्टरों को 5 वर्ष तक प्रदेश से जुड़े संस्थानों में सेवाएं देने का अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि सुपर स्पेशियलिटी में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए सरकार ने बाॅन्ड में निहित शर्तों के आधार पर किसी भी दबाव व बल का इस्तेमाल नहीं किया है। स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं को मजबूत करने के लिए सरकार का यह निर्णय प्रदेश के लोगों के हित में है।
इस मामले में सरकार ने एकल पीठ के फैसले को एलपीए के माध्यम से अदालत में चुनौती दी थी। इस मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को पलटते हुए कहा कि अनिवार्य सेवाओं के लिए डॉक्टरों से किए जाने वाले ऐसे बॉन्ड बाध्यकारी हैं।
यह है मामलाबता दें कि इस मामले में प्रतिवादी ने सुपर स्पेशियलिटी विशेषज्ञता हासिल करने के बाद एम्स बिलासपुर में सेवाएं देने की गुजारिश की थी। इस पर विभाग ने असहमति जताते हुए अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करने से मना कर दिया। इसे लेकर प्रतिवादी ने याचिका दायर की थी। इसे खंडपीठ ने निरस्त कर दिया।
अदालत ने स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं को लेकर यह फैसला दिया है, जो प्रतिवादी को जनता के हित में सेवा करने के लिए बाध्य करता है। प्रतिवादी डॉक्टर को सुपर स्पेशियलिटी कोर्स करने के बाद 5 वर्ष तक प्रदेश में सेवाएं देनी होंगी। वह इस जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता।
सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि पोस्ट ग्रेजुएट और सुपर स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों के लिए मेडिकल कॉलेजों को चलाने के लिए 5 साल की शर्त राज्य के हित में है। राज्य ऐसे डॉक्टरों को उचित वजीफा भी देती है।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने टीजीटी, पीजीटी और सीएंडवी अध्यापकों की अनुबंध आधार पर की गई भर्तियों को लेकर महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है।
अदालत ने इन शिक्षकों को उनके प्रथम नियुक्ति से स्थायी अध्यापकों की तरह वित्तीय लाभ देने और नियमित करने के आदेश दिए हैं। साथ ही उन्हें वरिष्ठता का भी लाभ देने को कहा है।
न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की एकल पीठ ने यह फैसला पारित किया। अदालत ने कहा कि छह महीने के अंदर याचिकाकर्ताओं को सारे वित्तीय लाभ दिए जाएं। वित्तीय लाभ केवल उन्हीं को मिलेगा, जिन्होंने अदालत में याचिका दायर की है। छह माह में लाभ नहीं देने पर सरकार को छह फीसदी ब्याज भी चुकाना होगा।
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ की ओर से वर्ष 2017 में प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में इस बाबत याचिका दायर की गई थी। ट्रिब्यूनल के बंद होने के बाद 2020 में यह मामला उच्च न्यायालय को स्थानांतरित किया गया था।
संघ के 20 हजार सदस्यों को मिलेगा लाभ : वीरेंद्र
याचिकाकर्ता हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने बताया कि कोर्ट के इस फैसले से हिमाचल राजकीय अध्यक्ष संघ के के करीब 20 हजार पात्र सदस्यों सहित कोर्ट में याचिका दायर करने वाले शिक्षकों को ही यह लाभ मिलेगा।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2010 के बाद नियुक्त हुए अनुबंध शिक्षकों को इस फैसले का लाभ होगा। याचिका 2017 में दायर हुई थी, ऐसे में देय वित्तीय लाभ इस अवधि के बाद मिलेंगे।
वरिष्ठता और पेंशन का लाभ वर्ष 2010 के बाद से मिलेगा। चौहान ने कहा कि शिक्षक हित में संघ ने लंबी लड़ाई लड़ी है। हाईकोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है।
भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में नहीं था अनुबंध का उल्लेख